भगवान महावीर स्वामी का देव नगरी सिरोही में विचरण एवं तीर्थ 

April 11, 2022

562 ईसा पूर्व में भगवान महावीर स्वामी ने नाणा गाँव होते हुए वर्तमान के सिरोही ज़िले में आबू पर्वत की पहाड़ियों में विचरण किया था। सिरोही ज़िले में सबसे अधिक उनके जीवित दर्शन को लेकर प्रमाण मिलते हैं। जैन शास्त्रों में लिखित उल्लेखो के अनुसार भगवान के कानों में कील ठोकने का उपसर्ग बामनवाडजी तीर्थ एवं सांप के डंसने के वृतांत सिरोही के नांदिया गाँव से जुड़े हैं। प्राचीन जैन शास्त्र और समुदाय से जुड़े लोगों के अनुसार सिरोही ज़िले के आबूरोड शहर के नज़दीक के मूंगथला तीर्थ में उनकी एकमात्र खड़ी प्रतिमा होने का भी दावा किया जाता है।

जैन शास्त्रों और विभिन्न संतो की ओर से लिखे ग्रंथो में यह प्रमाण मिले हैं कि भगवान महावीर अपने जीवनकाल के 37वें साल में विहार के लिए यहां आए थे। चूंकि वह अपने लोगों से दूर रहकर आराधना करना चाहते थे इसलिए वे सिरोही के आबू पर्वत की तरफ आए और यहां से सिंध की तरफ निकले।

भगवान महावीर स्वामी के अनेक जीवंत स्वामी तीर्थ सिरोही ज़िले में है जो भगवान के जीवनकाल में बने हुए है।

बामनवाडज़ी : जहां ग्वाले ने भगवान महावीर के कान में कील ठोकी, जिसे जीवित स्वामी तीर्थ भी कहते हैं

सिरोही के समीप स्थित बामनवाडज़ी को भगवान महावीर का जीवित स्वामी तीर्थ भी माना जाता है। वरिष्ठ इतिहासका सोहनलाल पाटनी की किताब अर्बुद परिमंडल के सांस्कृतिक इतिहास में यह जिक्र हैं कि चूंकि भगवान महावीर ने मध्यम अवस्था में विचरण किया था और इस तीर्थ की स्थापना उनके जीवित काल में ही हो गई थी इसलिए इसे जीवित स्वामी तीर्थ कहा जाता है। यहां तक की शास्त्रों में यह भी उल्लेख है कि यहां पर ध्यान में बैठे भगवान महावीर को एक ग्वाला अपनी गाय की सार संभाल के लिए कहकर गया और उसे लगा की उन्होंने सून लिया। जब वह लौटा तो उसकी गाय नहीं थी इस पर जब उसे जवाब नहीं मिला तो उसने कान में कील ठोक दी।

भगवान के कान से किल निकलने के वक्त दर्द से भगवान की चीख निकली जिससे पास ही की एक चटान में दरार आ गयी। यह चट्टान आज बामनवाडजी तीर्थ पे स्तिथ है एवं जैन धर्म के अनुयायीयो के लिए एक अति पूजनीय स्थल है।

तीर्थ की व्यवस्था वर्तमान में सेठ श्री काल्याणजी परमानंद जी पेढी, सिरोही द्वारा की जाती है एवं प्रति वर्ष लाखों जैन भक्त बामनवाडजी तीर्थ में भगवान के मंदिर एवं उपसर्ग स्थल के दर्शनार्थ आते है।

नांदिया: यह जीवंत महावीर स्वामी तीर्थ भगवान के बड़े भाई नंदीवर्धन ने बनाया था, यहीं पर चंडकौशिक नाग ने भगवान को डसा था।

जैन शास्त्रो और संतों के द्वारा लिखे अलग-अलग ग्रंथो में बामनवाड़ जी के पास नांदिया गांव का भी उल्लेख है। यह भी जीवंत महावीर स्वामी का तीर्थ है। ऐसी मान्यता है कि यही रास्ता पहाडिय़ो से होते हुए आबू पर्वत की तरफ जाता था और इन्हीं पहाडियो में चंडकौशिक नाग था। भगवान महावीर के ध्यान की मुद्रा में नाग ने इन्हें डस लिया था, जिसमें खून की जगह दूध की धारा बहने लगी। उनके जीवित काल में ही इस मंदिर को इनके बड़े भाई नंदीवर्धन ने बनाया था, जिसकी प्रतिष्ठा पाश्र्वनाथ के गणधर केशी ने की थी।

दियाणा :

जैन शास्त्रों के अनुसार भगवान महावीर स्वामी ने सिरोही ज़िले के आबू पर्वत के आस पास के 17 गांव में विहार किया था जिसमें दियाणा एक महत्वपूर्ण तीर्थ है। यह तीर्थ भी ज़ीवित स्वामी तीर्थ कहलाता है क्यूँकि यह भगवान के जीवनकाल में भगवान के बड़े भई नंदी वर्धन द्वारा बनाया गया था।

मूंगथला: एक मात्र भगवान महावीर की खड़ी प्रतिमा, 2600 साल पुराने शिलालेख में जिक्र

सिरोही ज़िले के आबूरोड शहर से करीब 7 किलोमीटर दूर मूंगथला भगवान महावीर की तपस्वी भूमि रही है। मूंगथला में नंदीवृक्ष के नीचे भगवान ध्यान में रहे थे। इस तीर्थ के बारे में यह भी कहा गया है कि पूर्णराज नाम के राजा ने भगवान भगवान महावीर के जन्म के बाद 37 वें वर्ष मे इस प्रतिमा जी को निर्मित करवा कर श्री केशी नामक गणधर के हाथों प्रतिष्ठित करवाई। इस मंदिर में आज भी मूल मंदिर की 2600 सौ साल पुराना शिलालेख भी स्थापित है जिसमें भगवान महावीर क यहा तपस्या का उल्लेख बताया जाता है। यहां तक की वि.सं.1334 का भीनमाल में प्राप्त शिलालेख भी इस तथ्य को स्वीकार करते है।

इसके अलावा भगवान महावीर स्वामी के अनेक तीर्थ सिरोही ज़िले में स्तिथ है जिसमें वर्तमान में बना पावपूरी तीर्थ, बालदा एवं माउंट आबू में देलवाड़ा परिसर में बने तीर्थ विख्यात है।